भारतीय राजनीति में नाटकीय मोड़ों की कोई कमी नहीं है, और अरविंद केजरीवाल का 17 सितंबर 2024 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना एक और बड़ा राजनीतिक ड्रामा बन गया है। यह इस्तीफा एक नाटकीय घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें उनके नेतृत्व, राजनीतिक रणनीति, और सत्ता के प्रति उनके दृष्टिकोण पर कई सवाल उठ रहे हैं, कि उन्हें इस्तीफा तब ही देना था जब वो जेल जा रहे थे अब ये राजनीतिक ड्रामां के सिवाय कुछ नहीं है ।
नाटकीय पृष्ठभूमि-
अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति में अपने करियर की शुरुआत एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में की थी। उनके नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (AAP) ने जनता से सीधे जुड़े मुद्दों को उठाया और दिल्ली की राजनीति में अपना एक विशेष स्थान बनाया। लेकिन 2024 में यह इस्तीफा एक ऐसे समय पर आया है, जब उनकी पार्टी को कई राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
इस्तीफे के इस नाटक का समय और परिस्थितियां दोनों ही संदेहास्पद हैं। केजरीवाल ने इस्तीफे तब दिया है, जब उनकी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप और सत्ता के दुरुपयोग के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। यह घटनाक्रम तब और दिलचस्प हो गया जब उन्होंने अपने इस्तीफे के पीछे “नैतिकता” और “जनहित” की दुहाई दी, जबकि आलोचक इसे एक चाल मान रहे हैं।
सार्वजनिक ध्यान खींचने की रणनीति-
अरविंद केजरीवाल की राजनीति का एक अहम हिस्सा है कि वे जनता का ध्यान खींचने के लिए ऐसे कदम उठाते हैं, जो न केवल मीडिया में सुर्खियां बटोरते हैं, बल्कि उन्हें एक “नायक” के रूप में प्रस्तुत करते हैं। 2024 में उनका इस्तीफा भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है।
यह इस्तीफा एक सोची-समझी रणनीति थी, जिसके जरिए वे खुद को एक बार फिर “जनता के नेता” के रूप में पेश करना चाहते हैं। दिल्ली में उनकी लोकप्रियता पिछले कुछ वर्षों में घट रही थी, और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं के आरोपों से उनकी छवि को नुकसान हो रहा था। ऐसे में इस्तीफा देकर उन्होंने राजनीतिक संकट से ध्यान हटाकर खुद को फिर से जनता का “नायक” बनाने का प्रयास कर रहें हैं ।
वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाना-
यह इस्तीफा सिर्फ एक नाटकीय कदम नहीं, बल्कि वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति भी माना जा रहा है। दिल्ली की जनता जिन मुद्दों से जूझ रही है – जैसे कि जल संकट, प्रदूषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत – उन पर ध्यान न देकर केजरीवाल ने इस्तीफा देने का निर्णय लिया।
विपक्षी दलों का कहना है कि यह कदम एक चाल है, ताकि सरकार की विफलताओं पर चर्चा न हो और पूरा ध्यान उनके “कथित नैतिक” कदम पर केंद्रित हो जाए। इससे न केवल उनकी प्रशासनिक कमियों से ध्यान हटता है, बल्कि आगामी चुनावों में उनके लिए सहानुभूति का माहौल भी तैयार होता है।
राजनीतिक अस्थिरता का कारण-
केजरीवाल का इस्तीफा एक बार फिर दिल्ली में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन गया है। 2014 में भी उन्होंने इस्तीफा देकर दिल्ली की राजनीति में अस्थिरता पैदा की थी, और 2024 में उनका यह कदम उसी तरह का एक और उदाहरण है। उनके इस्तीफे से न केवल दिल्ली की राजनीति पर असर पड़ेगा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी इसका प्रभाव देखने को मिलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि केजरीवाल इस कदम के जरिए अपनी पार्टी को फिर से एकजुट करना चाहते हैं और जनता में एक बार फिर “नई राजनीति” के प्रतीक के रूप में खुद को पेश करना चाहते हैं। हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या यह इस्तीफा वास्तव में एक नैतिक कदम था, या फिर एक राजनीतिक ड्रामा, जो कि सिर्फ सत्ता के खेल का हिस्सा है।
नैतिकता या दिखावा?-
केजरीवाल का इस्तीफा एक बार फिर “नैतिकता” के नाम पर दिया गया है, लेकिन इसके पीछे के असली कारणों पर कई सवाल उठ रहे हैं। क्या यह इस्तीफा वास्तव में सिद्धांतों और नैतिकता के लिए था, या यह सिर्फ सत्ता से बचने और अपनी छवि को सुरक्षित रखने का एक प्रयास था?
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम सिर्फ दिखावे के लिए था। एक ओर, केजरीवाल ने नैतिकता की दुहाई दी, वहीं दूसरी ओर, उनकी सरकार पर लगे आरोप और उनकी पार्टी के अंदर चल रही कलह को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके इस्तीफे के पीछे की मंशा को समझने के लिए यह देखना होगा कि वे सत्ता में वापस आने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाते हैं।
निष्कर्ष
17 सितंबर 2024 को अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा एक और राजनीतिक ड्रामा के रूप में सामने आया है, जिसे नैतिकता के बजाय राजनीतिक रणनीति और ध्यान भटकाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। उनके इस कदम ने दिल्ली की राजनीति को फिर से अस्थिर कर दिया है, और आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस इस्तीफे का असली उद्देश्य क्या था।
केजरीवाल ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वे न केवल एक कुशल राजनेता हैं, बल्कि राजनीति में नाटकीय मोड़ों का भी बेहतरीन उपयोग करना जानते हैं। हालांकि, इस इस्तीफे के वास्तविक परिणामों का आकलन भविष्य में होने वाले राजनीतिक घटनाक्रमों के आधार पर ही किया जा सकेगा।
लेखक –
(डा.) अरविन्द कुमार श्रीवास्तव एडवोकेट
जनपद न्यायालय हरिद्वार ।