हरिद्वार, 8 अक्टूबर: हरिद्वार में मायापुर स्थित पंचायती अखाड़ा श्री निरंजन में दशहरा पर्व के अवसर पर भव्य शस्त्र पूजा का आयोजन किया गया। इस शुभ अवसर पर अखाड़े के साधु-संतों ने शस्त्रों की विधिवत पूजा-अर्चना की। यह पर्व सनातन परंपराओं के अनुसार शक्ति और धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है, और विशेष रूप से साधु-संतों के अखाड़ों में इसका विशेष महत्व है।
शस्त्र पूजा की विधि के दौरान परंपरागत अनुष्ठानों का पालन किया गया और शस्त्रों को फूलों, रोली और अक्षत से सजाया गया। मंत्रोच्चारण और विशेष प्रार्थनाओं के साथ शस्त्रों की पूजा की गई। शस्त्र पूजा के बाद साधुओं ने एक-दूसरे को विजयदशमी की शुभकामनाएं दीं।
श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी दिगंबर राज गिरि ने इस अवसर पर उपस्थित साधु-संतों और श्रद्धालुओं को संबोधित किया। उन्होंने दशहरा पर्व के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। रावण पर भगवान राम की विजय ने हमें यह सिखाया है कि धर्म और सत्य की हमेशा जीत होती है। शस्त्र पूजा हमारे लिए आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने साधु-संतों और अखाड़े के सदस्यों को धर्म के मार्ग पर अडिग रहने और समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने का संदेश दिया।
दिगंबर राज गिरि ने कहा कि अखाड़ों की परंपरा में शस्त्रों का विशेष महत्व है क्योंकि ये शस्त्र धर्म की रक्षा के लिए हैं, न कि हिंसा के लिए। इस अवसर पर अखाड़े के सभी संतों ने धर्म, अध्यात्म और साधना के महत्व पर चर्चा की और समाज में धार्मिक मूल्यों को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस मौके पर हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। शस्त्र पूजा के बाद भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया। कार्यक्रम के अंत में संतों ने श्रद्धालुओं के साथ मिलकर समाज में शांति, सद्भाव और धर्म की महत्ता को बनाए रखने की प्रतिज्ञा ली।
हरिद्वार में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजन द्वारा आयोजित इस दशहरा पर्व ने सनातन धर्म के अनुयायियों को अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया। शस्त्र पूजा और दशहरा उत्सव के माध्यम से धर्म की रक्षा और सत्य के प्रति समर्पण की भावना को सशक्त किया गया इस मौके पर श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी दिगंबर राज गिरी, दिगंबर उमेश भारती, दिगंबर राकेश गिरी, दिगंबर राम सेवक, दिगंबर राकेश गिरी, मुख्या आशुतोष पूरी, महंत रवि पूरी, दिगंबर राज पूरी, दिगंबर सैलेश बन आदि संत मौजूद रहे।