– सावन के पहले दिन श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने बताई सावन की महिमा
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि सावन मास भगवान भोलेनाथ का महीना है। शिवपुराण में सावन मास के महत्व को लेकर विशद उल्लेख हैं। इसे श्रावण भी कहते हैं क्योंकि इस मास की पूर्णमासी श्रवण नक्षत्र से युक्त होती है। इस माह का मुख्य नक्षत्र श्रवण है, जिसके कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने सावन के पहले दिन निरंजनी अखाड़ा स्थित चरण पादुका मंदिर में श्रद्धालु भक्तों को सावन मास की महिमा बताते हुए यह बात कही।
श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि शिव इस माह में सृष्टि के कर्ता भी हैं क्योंकि सावन में भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के संचालन का भार शिव को सौंप देते हैं। इसलिए चौमासे में शिव ही सर्वेसर्वा देवता हैं। वे सावन माह के प्रधान देवता हैं। इस अवधि में शिव के शिवत्व की आराधना, अर्चना का आशय लोक की आराधना का है इसलिए कि अपने लोक के संरक्षक शिव अपने आप में लोक ही हैं। मान्यता है कि शिव सावन में ससुराल जाते हैं और यही समय होता है जब उनकी कृपा भूलोकवासी पा सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि श्रुति का अर्थ वेद होता है।
प्राचीन काल में वेद नित्य श्रवण किए जाते थे लेकिन शनै:-शनै: उनका सुनना कम हो गया तब यह निर्णय लिया गया कि इन्हें केवल वर्षाकाल में सुना जाए इसलिए इस काल में पड़ने वाले मास का नाम श्रावण हुआ। श्रावण का एक अर्थ प्रसन्न करना भी होता है। यह मास भोले को ही समर्पित है। इसलिए इसे शिवमास भी कहा जाता है। सावन मास की शिवरात्रि पर शिव का जलाभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान शिव का पूजन करने पर मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि इस माह की सबसे महत्वपूर्ण घटना समुद्र मंथन की मानी जाती है। इसी माह में सावन में समुद्र मंथन में हलाहल निकला था। जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ नाम उन्हें लोक ने दे दिया। उन पर विष का प्रभाव कम हो इसीलिए सावन या श्रावण मास में उन्हें जल चढ़ाया जाता है। पूरे देश में जो कांवड़ यात्राएं होती हैं वे भोले पर हुए विष प्रभाव को कम करने के लिए की जाती हैं। इसका अंतर्निहित संदेश है कि समस्त लोक विषमुक्त हो। कहा कि श्रावण मास में सभी सोमवारों पर उपवास किए जाते हैं। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों का कल्याण करते हैं। सावन की शिवरात्रि का भी अत्यधिक महत्व है। इस शिवरात्रि पर जो सावन मास की त्रयोदशी तिथि पड़ती है उस पर माता पार्वती और शिव दोनों की पूजा व आराधना की जाती है।